
लेखक:डाॅ.दरख्शाँ बानों
हरि न्यूज
फाल्गुन माह के प्रारम्भ होते ही सबके हृदय में एक मधुर उत्साह ,हर्ष व उल्लास के भाव जाग्रत होने लगता है चारों ओर रंगो की एक अलग विशिष्टता एवं महत्ता प्रकट होने लगती है। सभी मनुष्यों की दृष्टि में रंगो के प्रति एक विशेष प्रेम एवं लगाव उत्पन्न होने लगता है जिस प्रकार संसार की प्रत्येक वस्तु रहस्यमय होती है उसी प्रकार रंगों में भी एक विशेष रहस्य छिपा रहता है इसकी विशिष्टता के कारण रंगो के आधार स्वरूप होली का त्योहार हिन्दू धर्म का सबसे बड़ा त्योहार बडे़ धूम-धाम से मनाया जाता है। पवित्रता की प्रतीक होली की धूम केवल हिंदू धर्म में ही नहीं बल्कि भारत के सभी धर्मों में छाई रहती है होली के रंग में प्रेम का रहस्य छिपा रहता है होली के सभी रंगों गुलाल, अबीर ,हरे, लाल, पीले रंगों में सर्वधर्म समानता का प्रतीक मिलता है साथ ही इन रंगो से जाति धर्म, ऊँच -नीच, गरीब -अमीर की समानता के भाव मिलते हैं होली के दिन सभी मनुष्य प्रेम के साथ एक दूसरे के साथ गले मिलकर हृदयिक प्रेम का मिलन करते है इस प्रेम- व्यवहार से ज्ञात होता है कि होली का त्योहार प्रेम का त्योहार है, होली के रंग के मेल के साथ पापों,दुर्गुणों का नाश करने वाला एवं सर्वधर्म प्रेम का संगम निर्मित करने वाला त्योहार है ।जिस प्रकार यह संसार प्रकृति के द्वारा एक समय चक्र पर चलता रहता है उसी प्रकार यह होली का त्योहार वर्ष में एक बार आकर सभी रंगो के मेल के द्वारा प्रेम का परिचय कराता रहता है। जिसे समझना सभी मनुष्यों के लिए अति आवश्यक है।
होली के विभिन्न रंगो की तरह भारत में विभिन्न हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई धर्म समुदाय के लोग निवास करते है जिसमें प्रेम एवं एकता स्थापित होना अति आवश्यक है ,इसलिए यह त्योहार भारत में विशिष्ट महत्ता के साथ मनाया जाता है।
सर्वधर्म समानता का उपदेश देने वाले सूफी -संत ,महात्मा ,समाज सुधारकों नें होली के त्योहार की महत्ता बताई है।इसी परिप्रेक्ष्य में
प्रेम एवं एकता के प्रतीक सूफी सम्प्रदाय के सूफी बुजुर्ग हाजी वारिस अली शाह धार्मिक रूप से एकत्व भाव बनाये रखने के लिए अपने हिन्दू शिष्यों व अनुयायियों के साथ हिन्दू पर्व होली को बहुत खुशी के साथ मनाते थें ।उ०प्र० के जनपद बाराबंकी कस्बा देवां के महान सूफी हजरत हाजी वारिस अली के अनेक हिन्दु, मुस्लिम, सिख, ईसाई शिष्य हुए। वह सभी प्रेम के रंग में रगें हुए हजरत हाजी वारिस अली शाह से अत्यधिक प्रेम एवं श्रद्धा रखते, उनके बताए हुए उपदेशों का पालन करते थे। उनके शिष्यों में ठाकुर, पंडित सिंह, वारसी रईस (मलाउली), राजा बख्त सिंह वारसी, पण्डित आत्माराम वारसी फैज़ाबाद, राजा सरबजीत सिह वारसी , मुन्शी तिलक नारायण वारसी मुजफरपुर (बिहार) लक्ष्मी नरायण वारसी, बाबू पंडित चतुर्भुज सहाए शास्त्री, कन्हैया लाल वारसी एडवोकेट (अलीगढ़) ,काउन्ट गुलारजा वारसी, (पेरिस) प्रिन्स वारसी, टाल्सन वारसी अफरीकी इत्यादि हैं ।इनमें वह हिन्दू धर्म से सम्बन्धित अनुयायियों के साथ मिलकर होली का महान उत्सव मनाते व प्रसन्न होते, साथ ही होली व फाल्गुन गीत गाते। उनके शिष्यों ने उनकी रूचि अनुसार अनेक होली गीत ,अवधी, पूर्वी भाषा में लिखे गए। आज भी जनपद बाराबंकी व अन्य स्थानों पर जगह-जगह उनके रूचिपूर्ण गीतों को गाकर मनाया जाता है। सभी हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सभी शिष्य हाजी वारिस अली शाह की परम्परा अनुसार मिलकर होली के रंग को प्रेम के साथ खेलते हैं।
हाजी वारिस अली शाह के शिष्य रहीम शाह वारसी ने होली गीत इस प्रकार लिखा-
“फाग जग मा खेलन पिया वारिस आए,
रंग प्रेम प्रीति में मन रंगाए
मची गलिन-गलिन चँहु ओर धूम, देखो हूरो मलक देख धाए।
वहै औलिया अम्बिया लिख रूप रंग ,
रहे सूरत से सूरत अपन लगाए,
कुर्बान अली के बलिहारी ‘नादिम’ जेहि। घर उस सुभ घरी ललन जाए,
फाग जग मा खेलन पिया वारिस आए।”
पण्डित दीनदार शाह वारसी जी ने होली के फाग के समय का मनोहारी वर्णन इस प्रकार किया है-
“पिया वारिस आज खेलत होरी
खेलत होरी, खेलावत होरी।
प्रेम नगर मा फाग रची है ,
शुभ मंगल सखियन मा मची है।
अबीर ,गुलाल थालन मा भरी है, चाबत जात है पान गिलौरी,
पिया वारिस आज खेलत होरी।”
इसी तरह अनेक फाग गीत ,भजन दोहे इनके शिष्यों द्वारा लिखे गए। यह त्योहार होली के रंग के साथ धार्मिक ,सामाजिक ,सांस्कृतिक एवं ईश्वरीय प्रेम का परिचय देता है। इस प्रकार प्रतिवर्ष होली का त्योहार एक प्रेम का संदेश लेकर हमारे सामने प्रस्तुत होता है। डाॅ.दरख्शाँ बानों (हिंदी विभाग ) देव समाज माडर्न स्कूल सुखदेव विहार नं.2 ओखला नई दिल्ली