
हरि न्यूज
सचिन तिवारी
हर साल 3 मई को विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है, जो पत्रकारिता की स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की आजादी और लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की अहमियत को रेखांकित करता है। यह दिन न केवल पत्रकारों के साहस और समर्पण को सम्मानित करता है, बल्कि प्रेस की स्वतंत्रता पर मंडराते खतरों को भी उजागर करता है। भारत, जो विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, में प्रेस की स्वतंत्रता का एक समृद्ध इतिहास रहा है, लेकिन हाल के वर्षों में इस क्षेत्र में कई गंभीर चुनौतियां सामने आई हैं। इस लेख में हम भारत में पत्रकारों की स्वतंत्रता की स्थिति, उनके सामने आने वाली समस्याओं और पिछले एक दशक में पत्रकारों पर हुए हमलों व उत्पीड़न का विश्लेषण करेंगे।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19 अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देता है, जो प्रेस की स्वतंत्रता का आधार है। फिर भी, विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में भारत की रैंकिंग पिछले कुछ वर्षों में लगातार गिरती जा रही है। 2014 में भारत इस सूचकांक में 140वें स्थान पर था, जो 2025 में घटकर 151वें स्थान पर आ गया। यह स्थिति भारत को “बहुत गंभीर” श्रेणी में लाती है, जो पत्रकारों की स्वतंत्रता और सुरक्षा के लिए चिंताजनक है। पड़ोसी देश जैसे नेपाल, श्रीलंका और बांग्लादेश भी इस सूचकांक में भारत से बेहतर स्थिति में हैं।
भारत में पत्रकारों को कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इनमें भौतिक हिंसा, धमकियां, फर्जी मुकदमे, और सरकारी व गैर-सरकारी ताकतों द्वारा दबाव शामिल हैं। कश्मीर जैसे क्षेत्रों में स्थिति विशेष रूप से चिंताजनक है, जहां पत्रकारों को अक्सर पुलिस और अर्धसैनिक बलों द्वारा परेशान किया जाता है। इसके अलावा, भ्रष्टाचार और संगठित अपराध पर खोजी पत्रकारिता करने वाले पत्रकारों को विशेष रूप से निशाना बनाया जाता है।
पिछले एक दशक में भारत में पत्रकारों के खिलाफ हिंसा की घटनाओं में चिंताजनक वृद्धि हुई है। कुछ अनुमानों के अनुसार, 2014 से 2024 के बीच भारत में कम से कम 40 पत्रकारों की हत्या हुई है। इनमें से कई हत्याएं उन पत्रकारों की थीं, जो भ्रष्टाचार, अवैध खनन, या संगठित अपराध जैसे संवेदनशील मुद्दों पर काम कर रहे थे। उदाहरण के लिए, 2011 में मुंबई में पत्रकार जे. डे की हत्या और 2024 में छत्तीसगढ़ में पत्रकार मुकेश चंद्राकर की हत्या ने पत्रकारिता के खतरों को उजागर किया।
इंटरनेशनल प्रेस इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में पत्रकारों की हत्याओं का प्रमुख कारण भ्रष्टाचार से जुड़ी खोजी पत्रकारिता है। 2018 में प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत में पत्रकारों की अधिकांश हत्याएं संघर्ष क्षेत्रों के बजाय भ्रष्टाचार की जांच से जुड़ी थीं। इसके अलावा, पिछले 10 वर्षों में पत्रकारों पर 198 से अधिक हमले दर्ज किए गए हैं, जिनमें शारीरिक हिंसा, धमकियां, और संपत्ति को नुकसान शामिल है।
पत्रकारों को चुप कराने के लिए फर्जी मुकदमों और जेल का सहारा लेना भारत में एक गंभीर समस्या बन गया है। मानहानि, राजद्रोह, और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े कानूनों का दुरुपयोग कर पत्रकारों को “राष्ट्र-विरोधी” करार दिया जाता है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने 2023 में पत्रकारों की हिरासत और कैद को रोकने की अपील की थी, जो भारत जैसे देशों में प्रेस स्वतंत्रता पर बढ़ते हमलों को दर्शाता है।
हाल के वर्षों में, कई पत्रकारों को गैर-कानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (UAPA) जैसे कठोर कानूनों के तहत गिरफ्तार किया गया है। इनमें से कई मामलों में पत्रकारों को बिना मुकदमे के महीनों तक जेल में रखा गया। हालांकि सटीक आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन अनुमान है कि पिछले 10 वर्षों में सैकड़ों पत्रकारों को फर्जी मामलों में गिरफ्तार किया गया, जिनमें से कई को बाद में बरी कर दिया गया।
पत्रकारों की स्वतंत्रता को सीमित करने में केवल हिंसा और कानूनी दबाव ही नहीं, बल्कि आर्थिक और सामाजिक दबाव भी शामिल हैं। कई मीडिया संस्थान राजनीतिक या कॉर्पोरेट हितों के दबाव में काम करते हैं, जिससे पत्रकारों की स्वतंत्रता प्रभावित होती है। इसके अलावा, डिजिटल युग में फर्जी खबरों और ट्रोलिंग ने पत्रकारों की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए हैं। 2025 की विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस की थीम, “नवीन साहसी दुनिया में रिपोर्टिंग: प्रेस स्वतंत्रता और मीडिया पर कृत्रिम बुद्धिमत्ता का प्रभाव,” इस बात को रेखांकित करती है कि AI और डिजिटल तकनीकों का दुरुपयोग पत्रकारिता के लिए नई चुनौतियां पैदा कर रहा है।
विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस हमें यह याद दिलाता है कि एक स्वतंत्र प्रेस के बिना लोकतंत्र अधूरा है। भारत में पत्रकारिता की स्वतंत्रता को मजबूत करने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जाने चाहिए:
पत्रकारों के लिए विशेष सुरक्षा कानून और त्वरित जांच तंत्र की आवश्यकता है।
मानहानि और राजद्रोह जैसे कानूनों का दुरुपयोग बंद होना चाहिए।
मीडिया संस्थानों को राजनीतिक और कॉर्पोरेट दबाव से मुक्त रखने के लिए नियामक ढांचा मजबूत करना होगा।
पत्रकारों को डिजिटल युग की चुनौतियों से निपटने के लिए प्रशिक्षण और संसाधन उपलब्ध कराए जाने चाहिए।
विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस हमें उन निडर पत्रकारों को सलाम करने का अवसर देता है, जो सच्चाई को सामने लाने के लिए अपनी जान जोखिम में डालते हैं। भारत में प्रेस स्वतंत्रता की स्थिति चिंताजनक है, और पिछले एक दशक में पत्रकारों पर बढ़ते हमले और उत्पीड़न इस बात का सबूत हैं। फिर भी, पत्रकारिता का साहस और समर्पण हमें उम्मीद देता है। यह हम सभी की जिम्मेदारी है कि हम एक ऐसी व्यवस्था का समर्थन करें, जहां पत्रकार बिना डर या पक्षपात के अपना काम कर सकें। आइए, इस विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस पर हम संकल्प लें कि हम सच्चाई और स्वतंत्रता की आवाज को और मजबूत करेंगे।