
हरि न्यूज
हरिद्वार। आज केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के सहयोग से श्री भगवानदास आदर्श संस्कृत महाविद्यालय में एक दिवसीय अखिल भारतीय संस्कृत शोधसम्मेलन का आयोजन किया गया।

जिसका मुख्य विषय संस्कृत साहित्य में जीवन कौशल था। सम्मेलन का उद्घाटन पद्मश्री अभिराज राजेंद्र मिश्र, वित्तमंत्रालय की उपमहानिदेशिका श्रीमती हेमा जायसवाल डॉ. भोला झा आदि उपस्थित विद्वानों द्वारा दीप प्रज्वालन कर किया गया। कार्यक्रम में उपस्थित मुख्य वक्ता डॉ. अरविन्द तिवारी ने कहा कि संस्कृत भाषा के प्रत्येक वाक्य में जीवन कौशल विद्यमान है। महाभारत में वेदव्यास ने कहा कि जो व्यवहार हमें अपने लिए शोभा नहीं देता, वह व्यवहार हमें अन्यों से भी से नहीं करना चाहिए।

गीता हमें निरन्तर सत्कर्म करने का उपदेश देती है। संस्कृत में जीवन कौशल पर चर्चा करते हुए मनुस्मृति में कहा है कि जो अपने पूर्वजों एवं गुरुओं का सम्मान करता है; उसकी आयु, विद्या, यश और बल बढ़ते हैं। उपनिषद चरैवेति-चरैवेति का उपदेश देकर हमारे जीवन कौशल को बढ़ाती है। कठोपनिषद जीवन कौशल का भंडार है।

विशिष्टातिथि पद्मश्री राष्ट्रपति पुरस्कृत प्रो. अभिराज राजेंद्र मिश्र जी ने कहा कि महाभारत का शांतिपर्व जीवन कौशल की शिक्षाओं से भरा हुआ है। हमारा सौभाग्य है की हम उस धरा पर पैदा हुए हैं, जहाँ वेद, दर्शन, उपनिषद् आदि का शाश्वतज्ञान उत्पन्न हुआ। इन्हीं वेदों के ज्ञान के कारण भारत विश्व गुरु था। भारत के ऋषियों ने ही विश्व को जीवन कौशल सिखाया है। उन्होंने बताया कि प्रसिद्ध यूरोपियन विद्वान् गेटे ने कालिदास की

अभिज्ञानशाकुन्तलम् को पढ़कर यूरोप में घोषणा की थी कि यदि कोई जीवन्त स्वर्ग देखना चाहता है तो भारत भूमि के दर्शन करें। उन्होंने कहा कि वंदे मातरम् यह संस्कृत वाक्य जीवन कौशल का सबसे बड़ा उदाहरण है।
मुख्यातिथि वित्तमंत्रालय भारतसरकार की उपमहानिदेशिका श्रीमती हेमा जायसवाल ने कहा की संस्कृत ज्ञान का अनुपम भंडार है। संस्कृत भाषा प्राचीन ग्रंथो का मंत्र संग्रह मात्र नहीं है अपितु यह हमारे ऋषियों द्वारा प्रदत्त अमूल्य धरोहर है। संस्कृत साहित्य आध्यात्मिकता के साथ-साथ आधुनिक युग में भी जीवन जीने की कला सिखाता है। संस्कृत के नाटक नेतृत्व, संघर्ष और क्षमता का अवबोधन कराते हैं। उपनिषद् हमें प्रतिकूल स्थिति में भी धैर्य का पाठ पढ़ाते हैं। इस संगोष्ठी के माध्यम से संस्कृत के इन जीवन मूल्यों को समाज के सामने लाने का प्रयास किया जा रहा है।
डॉ. अनिल कुमार ने कहा कि वेद हमें संगठन में रहने की शिक्षा देते हैं। डॉ. गौतम आर ने कहा कि भारतीयदर्शन परम्परा भी त्यागपूर्वक जीवन जीने का उपदेश देती है। डॉ. सुशील प्रसाद बडोनी ने कहा कि संप्रेषण-कौशल, नैतिक-कौशल, कर्तव्य-कौशल में आत्मसंयम आदि जीवन कौशलों के शिक्षा संस्कृत साहित्य देता है।
कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉ. भोला जाने कहा कि यदि हम संस्कृत साहित्य में निहित जीवन कौशल का अपने दैनिक जीवन में आचरण करते हैं तो हम निश्चित ही अपने जीवन को उच्च आदर्शमय बना सकते हैं। जो लोग वेदादि शास्त्रों को पढ़कर उनकी शिक्षा अपने जीवन में अपनाते हैं; वें समाज में सर्वत्र आदर प्राप्त करते हैं। संस्कृत साहित्य परोपकार, सदाचार, अहिंसा आदि जीवन मूल्यों का निरन्तर उपदेश देता है।
सम्पूर्तिसत्र की अध्यक्षता कर रहे डॉ. हरिगोपाल शास्त्री ने औपनिषदिक परम्परा में निहित जीवन मूल्यों पर विचार करते हुए कहा कि मानव जीवन के लिए जो कुछ भी इष्ट, कल्याणकारी, शुभ व आदर्श है, उसे जीवन मूल्य माना गया है, जिनसे मानव जीवन का संपूर्ण विकास हो। उपनिषदों के चिंतन में धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष -चार पुरुषार्थों में समस्त मानव जीवन मूल्य समावेशित है। हमारे ऋषियों का कहना था कि जिन उत्कृष्ट सद्गुणों से मानव जीवन सम्यक प्रकार से अलंकृत होता है, वे आचरणीय सूत्र ही मानवीय मूल्य हैं।
सम्पूर्तिसत्र के मुख्यातिथि उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय हरिद्वार के माननीय कुलसचिव डॉ. गिरीश कुमार अवस्थी, ने कहा कि मानव जीवन के उत्थान के समस्त उपाय उपनिषदों में वर्णित हैं। ईश, केन, कठ, प्रश्न, मुंडक, माण्डूक्य, ऐतरेय, तैत्तिरीय, छांदोग्य, श्वेताश्वतर, बृहदारण्यक इन 11 प्रामाणिक उपनिषदों में स्वर्णिम मानव जीवन मूल्यों का वर्णन उपलब्ध है। आदि गुरु शंकराचार्य जी ने प्रामाणिक मानकर इनका ही भाष्य किया था। कारण यह है कि उपनिषद जीवन-मूल्यों की बात प्रमुखता से करते हैं, जो हमें स्वावलंबी बनने के लिए प्रेरित करते हैं।
मुख्य वक्ता के रुप में समुपस्थित उत्तराखण्ड संस्कृत अकादमी हरिद्वार के शोधाधिकारी डॉ. हरीश गुरुरानी ने बताया कि भारतीय चिंतन और पुरातन साहित्य में धर्म के तत्त्वों को ही जीवन मूल्य माना गया है। मनु और भतृहरि मानवीय गुणों को ही मूल्य मानते हैं। रामधारी सिंह दिनकर के अनुसार, “व्यक्ति के सदगुण एवं सद्व्यवहार ही जीवन मूल्य हैं।
सम्मेल के सम्पूर्तिसत्र के मुख्यातिथि डॉ. पद्मप्रसाद सुवेदी ने बताया कि पवित्र आचरण, श्रेष्ठ ज्ञान, सत्य, तप, दान, त्याग की भावना, लोभ से निवृत्ति, क्षमा, धैर्य, शम और दम आदि अनेक उत्तम जीवन मूल्य हैं, जो मनुष्य के जीवन को आनंदमय बनाते हैं।
गुरुकुल काङ्गड़ी विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के साहयकाचार्य डॉ. वेदव्रत जी ने अपने विचार व्यक्त करते हुआ कहा कि समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार, पापाचरण के मूल में यही निकृष्ट विचारधारा है। भौतिक पदार्थों के संग्रह एवं उपभोग तथा धन से कभी भी मनुष्य को तृप्ति नहीं मिल सकती। कठोपनिषद मे यमाचार्य इसी विषय में सचेत करते हुए कहते हैं कि न वित्तेन तर्पणीयो मनुष्यः अर्थात धन से कभी भी मनुष्य की तृप्ति नहीं होती, इसलिए जीवन को आनंदमय बनाने के लिए त्याग की भावना के साथ-साथ मनसावाचाकर्मणा लोभ, लालच न करना जैसे जीवन मूल्यों को आत्मसात करना आवश्यक है।
स्पर्श हिमालय विश्वविद्यालय के सहायकाचार्य डॉ. सुभाष चन्द्र बडोला ने बताया कि संसार में रहते हुए भौतिक पदार्थों के भोग के साथ त्याग की भावना का सूत्र उपनिषद में जीवन के कल्याण का सूत्र है। इस भौतिकवादी युग में त्याग की भावना का अभाव तथा दूसरे के धन को हड़पने का लोभ और लालच समस्त कुवृत्तियों की जड़ है।
सङ्गोष्ठी का आयोजन डॉ. रवीन्द्र कुमार ने किया। महाविद्यालय के प्रभारी प्राचार्य डॉ. बी. के. सिंहदेव ने सभी आगुन्तक विद्वानों का धन्यवाद ज्ञापित किया एवं प्रतिभागियों को प्रमाणपत्र वितरण करते हुए उनके उज्ज्वल भविषय की कामना की।
इस शुभ अवसर पर अनेक विद्वान एवं विदुषियों के साथ-साथ डॉ. निरञ्जन मिश्र, डॉ. मञ्जू पटेल, डॉ. आलोक कुमार सेमवाल, डॉ. अङ्कुर कुमार आर्य, श्री शिवदेव आर्य, श्री आदित्य प्रकाश, डॉ. सुमन्त कुमार सिंह, श्री एम. नरेश भट्ट, श्री मनोज कुमार, श्री अतुल मैखुरी, श्री विवेक शुक्ला, डॉ. प्रमेश कुमार बिजल्वाण आदि व अन्य कर्मचारी उपस्थित रहे।
