
हरि न्यूज
(लेखक:संदीप शर्मा देहरादून)
दूरियाँ बढा ली हमने,जब रास्ते जुदा देखे,
ख़ामोशियां अपना ली हमने,जब गैर उनके खुदा देखे।।
सलीके सब मालूम थे ,बस,,नही बरतते संग देखे,
जिनके संग यारी थी,असरदार वही देखे।।
मालूमात मुकम्मल थी,मुलाकात की महज मसीत,
क्या हुआ जो बरते न हम संग,औरों संग तो बरततें देखे।।
मौजदूगी भी रही सो गैर सी,वो अक्सर साथ मे संग देखे,
मजबूरियों की रही दुहाई, कितने मजबूर, सनम देखे।।
खुश फहमियाँ भी पाली रखी ,कर्जदार भ्रम रखे,
छोड़ न बात, वफादारी की,गैर कहा करम रखे।।
तूझे अब भी यकीन है,रहनुमाई की,
खैरियत, करम रखे,
बेवफा से,उम्मीद वफा की, अच्छा जो जख़्म हरे रखे।।
ऐसा कर न सोच संदीप, मर्ज को यार,कहा रखे,
लाइलाज रोग रहा है,संग दवा क्यों ही रखे।।