डीपीएस फेरूपुर ने मनाया वन्यजीव सप्ताह

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हरि न्यूज
हरिद्वार।डीपीएस फेरूपुर स्कूल में आजकल वन्य जीवन सप्ताह मनाया जा रहा है इसके अंतर्गत विद्यार्थियों को वन्य जीवन के महत्व के बारे में पावरप्वाइंट प्रेजेंटेशन एवं निबंध प्रतियोगिता व स्लोगन तथा भाषण प्रतियोगिता के माध्यम से समझाया जा रहा है।आज 4 अक्टूबर 2025 को प्रसिद्ध पक्षी एवं पर्यावरण विद् एवं गुरुकुल कांगड़ी के पूर्व प्रोफेसर व कुलसचिव प्रोफेसर दिनेश चंद्र भट्ट द्वारा डीपीएस फेरूपुर के छात्रों को संबोधित किया गया।अपनी प्रेजेंटेशन में उन्होंने बताया की इस अत्यधिक समृद्ध जैविक विविधता वाले भारत देश की वन संपदा एवं वन्य जीवन को  संरक्षित करने के लिए उचित शिक्षा और जागरूकता की आवश्यकता है।
विद्यार्थियों एवं आम नागरिकों को वन्य जीवन संरक्षण में भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए  वन्यजीव सप्ताह की परिकल्पना की गई थी। यह सप्ताह प्रकृति के संतुलन को बनाए रखने में वन्यजीवों की भूमिका के बारे में आम जनता में जागरूकता बढ़ाने के लिए मनाया जाता है।
प्रोफेसर दिनेश भट्ट ने बताया कि 560 बाघों की संख्या के साथ उत्तराखंड भारत में तीसरा स्थान रखता है, मध्य प्रदेश (785) और कर्नाटक (563) के बाद। 
यह वृद्धि जंगली बाघों के संरक्षण के प्रयासों की सफलता को दर्शाती है। 
प्रोफेसर भट्ट ने बताया कि भारत सरकार के सर्वे के अनुसार उत्तराखंड मैं 2200 से ज्यादा तेंदुआ यानी लेपर्ड निवास कर रहे हैं  l एक लेपर्ड लगभग 40 -50 किलोमीटर के  दायरे में घूमता रहता है जिसको होम  रेंज कहते हैं।
बाघों और तेंदुआ की बढ़ती आबादी के कारण जंगल में संतुलन बिगड़ रहा है और इंसानों और बाघों के बीच संघर्ष की स्थिति पैदा हो रही है।प्रोफेसर भट्ट ने अपने शोध पत्र जो हाल ही में रशियन एकेडमी ऑफ़ साइंसेज के जनरल में प्रकाशित हुआ है,उन्होंने बताया की उत्तराखंड में लेंटना झाड़ी के बहुत अधिक फैलाव के कारण बाघों और तेंदुओं को छिपने की जगह मिल रही है।साथ ही  उन्होंने कहा कि अप्रैल -जून में जंगल में आग लगने के कारण वन्य जीव गांव और उसके आसपास की जगह में पहुंच जाते हैं जिससे वन्य जीव का मनुष्य से संघर्ष बढ़ता जा रहा है l और प्रतिवर्ष लगभग दो दर्जन से अधिक लोग वन्यजीवों का शिकार हो जाते हैं और 100 से अधिक लोग घायल हो जाते हैं।
अतः ग्रामीण अंचलों के रास्तों और खेतों से लांटना झाड़ी को समूह नष्ट करने की वृहद योजना तैयार की जानी चाहिए ताकि लोकल लोगों को और स्कूल जाने वाले छात्र-छात्राओं को बाघ और तेंदुए का निवाला बनने से बचाया जा सके।
उन्होंने चिंता जाहिर की-अब हमारे उत्तराखंड में जंगलों को  बाघों और तेंदुए को रखने की क्षमता नहीं रही।यह क्षमता से अधिक संख्या में हो गए हैं और ग्रामीण क्षेत्रों में गायों बकरियां ,कुत्तों और मनुष्यों पर प्रतिदिन आक्रमण करते हुए देखे जाते हैं। गांव में बंदर,सूअर और मोर भी खेती-बाड़ी को बहुत नुकसान पहुंचाते हैं। जिस कारण से पारंपरिक खेती को भारी नुकसान हुआ है और  दुर्लभ दालों का बीज भी अब मिलना मुश्किल हो गया है। दुर्भाग्य से  वन्य जीवन के दुष्प्रभाव के कारण अधिकांश लोग गांव छोड़कर के शहरी क्षेत्र में बस गए हैं।
अतः सरकारी तंत्र,वन विभाग,पर्यावरण मंत्रालय और आम जनता को मिलकर के यह प्रयास करने होंगे कि वन्य जीवन भी रहे और लोगों के जीवन को और खेती बाड़ी को भी नुकसान न पहुंचे।इसके लिए टास्क फोर्स का गठन प्रत्येक जिले में किया जाना चाहिए। बंदरों की अधिकता को रोकने के लिए वृहद स्तर पर उनकी नसबंदी की जानी चाहिए।
कार्यक्रम में डीपीएस सोसाइटी के अध्यक्ष प्रोफेसर राजेंद्र अग्रवाल एवं सचिव अशोक त्रिपाठी ने भी अपने विचार व्यक्त किया और प्रधानाचार्य नमिता मैडम  ने सभी छात्र-छात्राओं व शिक्षक शिक्षिकाओं का धन्यवाद अदा किया और कहा कि छात्रों के ज्ञानवर्धन हेतु वन्य जीवन सप्ताह में अन्य कार्यक्रम भी किए जाएंगे।

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