
भगवान दास शर्मा “प्रशांत”
शिक्षक सह साहित्यकार
इटावा उत्तर प्रदेश
हरि न्यूज
हिंदी भाषा हिय में रखकर,
मन ही मन इठलाता हूँ।
हिंदी है अभिमान हमारा,
वंदे मातरम गाता हूँ।।
वैसे तो भाषाएं बहुत हैं,
सबका आदर करता हूं।
पर हिंदी है माता जैसी,
इसका वंदन करता हूं।।
सरल मधुर ये हिंदी भाषा,
भावों का उद्गार लिए।
इसके बावन अक्षर पावन,
सटीकता आधार लिए।।
पौराणिक है वेद वर्णिका,
संस्कृत जिसकी भाषा है।
विश्व व्यापी इसका प्रसार हो,
हम सबकी यह आशा है।।
शब्दकोश इतना अपार है,
है शिल्पकला में शुभ्रता।
वैज्ञानिक सुंदर लिपि इसकी,
छंदों में दिखे भव्यता।।
शब्द शब्द में भाव निराले,
व्याकरण में दिखे दिव्यता।
छंद विन्यास भी विस्तृत है,
हर वर्ण में मिले शुद्धता।
कवि सूरा की वाणी बनकर,
भक्ति भाव सिखलाती है।
तुलसीदास के कंठ से होकर,
मानस यह बन जाती है।।
मां के जैसे लगती हिंदी,
सहज, सरल औ प्यारी है।
इसीलिए हिंदी भाषा ही,
हमको सबसे प्यारी है।।

