सृष्टि के प्रथम शिक्षक, गुरु,पिता- माँ जननी है

उत्तराखंड हरिद्वार

हरि न्यूज

सृष्टि के प्रथम शिक्षक, गुरु,
पिता- माँ जननी है
कैसे चलना,बैठना,बोलने का,
हुनर सिखाती माँ जननी हैl
जीवन न बन जाये कहीं हैवान शैतान बच्चों का,
छान-छान कर भरती सदगुण माँ स्नेह की छलनी है।
बचपन में एक ज्योतिषी आये हमारे आँगन-द्वार,
माँ ने हाथ थमाया मेरा ज्योतिषी को,
जाना मेरे भविष्य का हाल, देखी-आड़ी-तिरछी रेखा जोड़-घटा कर बोला,
इसका जीवन है दुखों का पहाड़।
तेरा बच्चा तो मंदबुद्धि है जीवन इसका जी का जंजाल।
हुआ जब छः बरस का शाला में नाम लिखाया,
एक दिन शिक्षक माँ से बोले और उन्हें समझायाl
आपका लाडला बहुत ज्ञानी है,
यह हैआपके घर की शान l
माँ बोली गुरुजी सच-सच बोलो,
ज्योतिषी तो कछुओर बतायें।
क्या देखा मेरे लाडले में आपने,
मुझको भी तो कुछ समझायें,
गुरुजी बोले आपका बच्चा समय पर स्कूल आता है l
जो लकीरें खींचकर देता खींच स्लेट भर लाता है l
जैसे-जैसे उम्र बड़ी कक्षा में अब्बल वही आता है l
हर शिक्षक की बातों में मन ध्यान लगाता,
बचपन में खींची ज्योतिषी की आड़ी-तिरछी रेखाओं को,
माँ ने मन ही मन धिधकारा।
गुरु की खींची रेखाओं ने मेरा भाग्य चमकाया,
ज्योतिषी जी की वाणी ने माँ के मन को ठेस पहुँचाया l
धन्य हैं गुरुवर मेरे अ से अनपढ़ पढ़ाकर ज्ञ से ज्ञानी बनाया,
सच है गुरु एक दीपक है जो रहता स्वयं अंधियारे में,
अपने स्नेह से तिल-तिल जलता बच्चों का भाग्य चमकाया।
है मेरे गुरुदेव मेरे भाग्य विधाता,
कोटिशः चरण वन्दन जी आपके भागीरथ प्रयासों ने,
मेरा उजड़ा-चमन महकाया जी।
मेरे बागवाँ रहनुमा आपकी राह पर चल मैं भी शिक्षक बना,
मैने भी बिना भेदभाव बच्चों का भाग्य चमका कर अपार स्नेह पाया जी।

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