आज़ादी कोई भीख नहीं थी, शीश कटाने का सौदा थी

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रचनाकार:अब्दुल सलाम कुरैशी
जिला-गुना,मध्यप्रदेश

हरि न्यूज

आजादी कोई भीख नहीं थी,
शीश कटाने का सौदा थी,
कितनी माताओं की गोद हुई थी सूनी,
दो सौ वर्ष गुलामी जीकर।
कितने कोटि वीर शहीद हुए थे,
तब जाकर भारत माता बेड़ियों से आजाद हुई।
राजनीति के पंडितों ने खंगार डाले विश्व- संविधान,
राष्ट्रीय हित की बातें लेकर लिखा अपना मूल संविधान।
दो वर्ष ग्यारह मास अट्ठारह दिन के अथक प्रयास के बाद,
छब्बीस नवंबर उन्नीस सौ उनचास को सही हुआ हस्ताक्षर पश्चात।
भारतमाता की आत्मा हुई गर्वित,
फैला जग में संविधान का प्रकाश।
खुशहाली चहुँ ओर हुआ सुखद एहसास,
बना राष्ट्र धर्मनिरपेक्ष सभी धर्मो की आस।
भेदभाव नहीं किसी से चमके सबके भाग्य,
अचूक मंत्र बना संविधान देश-विकास।
उतर आया स्वर्ग भारतमाता के आँचल में,
करो कद्र रक्षा इसकी सदा समझकर गीता-कुरान-पुराण।
सदा झुकाओ शीश इसको ससम्मान,
ये देश के सम्मान का सुगन्धित गुलदस्ता है,
नहीं धर्म कोई भी इसमें है जुदा-जुदा।
बहती है इसकी रग-रग में गङ्ग-ओ-जमुनी अमन,
छब्बीस जनवरी उन्नीस सौ पचास को लागू हुआ वतन,
बन गया भारत विश्व संविधानों का चमन।
आओ हम सब देशवासी खुशियों का इजहार करें,
आओ मिलजुल धूमधाम से मनायें गणतंत्र दिवस।

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