
रितेश सैन
संस्थापक/अध्यक्ष
संस्कृति फाऊंडेशन

हरि न्यूज
समय का चक्र बदलता है। दलित पिछड़ों को भी उसका हक मिलता है। जो लोग कर्पूरी ठाकुर जी को गंदी-गंदी गालियाँ देते थे आज मजबूर हैं उनके अस्तित्व को मानने के लिए।
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री, पिछड़ों के मसीहा, आरक्षण के हिमायती कर्पूरी ठाकुर जी जब बिहार में आरक्षण लागू कर रहे थे कुछ राजनीतिक लोग उन्हें गाली देते थे कि “आरक्षण कहां से आई, कर्पूरी की माई बियाई।”
कर्पूरी ठाकुर जी नाई समाज से आते थे इसलिए उनके पेशे को लेकर उन्हें गाली दी गई…..
“कर्पूरी ठाकुर वापस जाओ, छुरा लेकर बाल बनाओ”
जननायक कर्पूरी ठाकुर जी के विचारों को उनके स्लोगन से ही समझा जा सकता है कि कर्पूरी जी “आज़ादी और रोटी”, “सामाजिक न्याय और गुणवत्ता भरी ज़िन्दगी” जीने के लिए लड़े। कर्पूरी ठाकुर ने अति पिछड़ों दलितों शोषितों वंचितों को अपने अधिकारों के लिए लड़ना सिखाया और स्वाभिमान से जीना सिखाया लेकिन आज भी कुछ लोगों को यह बात हजम नहीं हो रही कि दलित शोषित वंचित अपने अधिकार के लिए क्यों लड़ रहे हैं
वंचितों के हक़ और अधिकारों के लिए उनका संघर्ष और आदर्श सदैव हमारा मार्गदर्शन करते रहेंगे। दलित शोषित वंचित अति पिछड़े वर्ग के लोगों को एकत्रित होकर उनकी जन्म जयंती पर उनका सम्मान देना चाहिए उनको पुष्पर्चन करने चाहिए और अपने आने वाले बच्चों को वीडियो को उनके बारे में बताना चाहिए की किस तरह से किस परिस्थिति में कर्पूरी ठाकुर हम सबके लिए गाली खाकर भी लड़े हैं अपने अधिकारों को पाने के लिए लड़ना सिखाया है।