
बिजनौर। बुजुर्गों की शान रही गांधी टोपी आधुनिकता के दौर में लगभग लुप्त होती जा रही है। राष्ट्रीय पर्वों पर ही कुछ लोगों के सिरों पर गांधी टोपी दिखाई देती है। कभी लोगो के सिर का ताज व बुजुर्गों की शान कहलाने वाली यह टोपी आधुनिकता की अंधी दौड़ में समाप्त होती दिखाई दे रही है। आज का बुजुर्ग भी गांधी टोपी से परहेज कर रहा है उसे नए-नए फैशन की टोपियां लुभा रही है पुरानी गांधी टोपी को वह गुजरे जमाने की बात मानता है। हिंदू समाज में परिवार का उत्तराधिकारी बनाने के वक्त ही गांधी टोपी का इस्तेमाल होता है। अपने आप को गांधी जी का अनुयाई बताने वाले लोग भी अब गांधी टोपी से परहेज करने लगे हैं लगभग तीन दशक पहले तक गांव में गांधी टोपी का बहुत रिवाज होता था सभी बुजुर्ग टोपी पहनते थे टोपी पहने व्यक्ति का सम्मान किया जाता था। टोपी का वास्ता देकर कोई भी बात आसानी से मन वाली जाती थी। टोपी उछालना मतलब इज्जत तार तार करना जैसे मुहावरे बोले जाते थे।
देश की आजादी की लड़ाई में गांधी टोपी लगाकर आजादी की जंग लड़ी गई। महात्मा गांधी मदन मोहन मालवीय जवाहरलाल नेहरू गोविंद बल्लभ पंत लाल बहादुर शास्त्री जगजीवन राम नारायण दत्त तिवारी समेत लगभग सभी नेताओं के सिर पर टोपी लगी रहती थी आजादी के बाद के वर्षों में भी लोगों की शान यह टोपी बनी रही। पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह लाल बहादुर शास्त्री वीपी सिंह के समय तक भी इस टोपी का खास प्रचलन था सभी बुजुर्ग गांधी टोपी पहनते थे। परंतु अब टोपी का प्रचलन लगभग समाप्त हो चुका है किसान यूनियन समाजवादी पार्टी एवं आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता टोपी का इस्तेमाल कर रहे हैं जाने-माने गांधी वादी विचारक अन्ना हजारे के कार्यकर्ताओं में थोड़ा बहुत इस टोपी का प्रचलन है।
आज स्थिति यह है कि गांव में एक दो बुजुर्ग ही इस टोपी को पहने दिखाई देते हैं जबकि शहरों में इसकी संख्या नगण्य हो गई है। गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि तीस चालीस वर्ष पहले लोग धोती कुर्ता एवं टोपी पहनते थे जो राष्ट्रीय पहनावा था स्कूल जाने के समय भी छात्र धोती कुर्ता का इस्तेमाल करते थे आज आधुनिकता की दौड़ में तरह-तरह के फैशन मौजूद हैं धोती कुर्ता और टोपी गुजरे जमाने की बातें हो गई है चाहे बुजुर्ग हो या युवा हो सभी भारतीय पहनावे को छोड़कर पाश्चात्य संस्कृति को अपना रहे हैं। आधुनिकता के इस युग में लोग धोती कुर्ता के स्थान पर पेंट शर्ट और जींस पहनने लगे हैं। हिंदू समाज में सिर्फ रसम पगड़ी के अवसर पर परिवार के उत्तराधिकारी को टोपी पहनने का रिवाज रह गया है। इसके अलावा गिनती के ही लोग हैं जो अब गांधी टोपी लगाना पसंद करते हैं चाहे सामाजिक व्यक्ति हो या राजनीतिक पार्टी का कार्यकर्ता हो सभी नए-नए फैशन अपना रहे हैं एक दो पार्टी के कार्यकर्ता टोपी का इस्तेमाल कर रहे हैं। बुजुर्गों की शान रही गांधी टोपी गुजरे जमाने की बात हो गई है सरकार को चाहिए कि आधुनिकता के इस दौर में राष्ट्रीय पहनावे को महत्व देते हुए अनिवार्य रूप से धोती कुर्ता टोपी, कुर्ता पजामा टोपी पहनने के लिए जन जागरण अभियान चलाएं। बुजुर्गों को चाहिए कि वह युवाओं को प्रेरित करें उनका मार्गदर्शन करें और भारतीय पहनावे के लिए उन्हें प्रेरित करें सरकार को चाहिए कि वह खादी के वस्त्रों पर सब्सिडी देकर युवाओं को धोती कुर्ता कुर्ता पजामा पहनने की पहल करें। आने वाली पीढ़ी यह भूल जाएगी की कभी देश के अंदर धोती कुर्ता टोपी पजामा पहना जाता था इन बातों पर यकीन नहीं करेगी। धोती कुर्ता टोपी इतिहास के पन्नों में दर्ज होकर रह जाएगा। गांधी जयंती के अवसर पर सभी देशवासियों खास कर बुजुर्गों को चाहिए कि वह आधुनिकता की इस अंधी दौड़ से अपने आप को बचाकर रखें और टोपी का इस्तेमाल करके भारतीय संस्कृति को बचाने में योगदान दे।
,,,,,,,,,,, देवेन्द्र सैनी देव,,,,,,
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